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मेरे ख्वाबों की जलपरी ने 

इंतज़ार के शहजादे को 
जब से आँख की पुतली बनाया 
दिन गूंगे हो गए 
और रातें तन्हाई का लिबास पहन सुहागन 
क्या फर्क पड़ता है 
आस्मां तारों भरी चूनर पहने 
या अर्धरात्रि के चाँद से रोशन हो 

ख्वाबों की दुनिया से हकीकत की दुनिया तक के
फासले यूं ही तय नहीं किये जाते 
बिना रंगों के फूल सेज पर कितना सहेजो 
इंतज़ार के शहजादे हर दुल्हन की मांग नहीं भरा करते 

वो दूर वीराने में मंदिर में जलता दीया हो 
या दिल के तहखाने में जलती आस की शम्मा
ख्वाबों की जलपरियाँ कर ही लेती हैं अपने चाँद का दीदार 

अब वक्त के रौशनदान से चाहे झडे या नहीं कोई आस की किरण
ख्वाबों की शहज़ादियाँ बना ही लेती हैं 
इंतज़ार के शहज़ादे का ताजमहल 
और बुतपरस्ती बन जाती है उनकी इबादत उनका जुनून 

इंतज़ार के कहकहे खुद लगाना ………ये भी अन्दाज़ है इक मोहब्बत का 

Comments on: "इंतज़ार के कहकहे खुद लगाना ………" (15)

  1. एक अंतहीन किस्सा…बहुत सुंदर

  2. इंतजार का लुत्फ़ वही जानता है जो इंतजार करता है..

  3. वाह-वाह…!क्या कहें इस रचना के बारे में!बरसात में ऐसा स्रजन होना स्वाभाविक ही है!

  4. आपकी यह रचना कल मंगलवार (02-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

  5. .बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति . आभार मुसलमान हिन्दू से कभी अलग नहीं # आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

  6. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार८ /१ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है।

  7. इस अंदाज़ से भी परिचय मिला …बहुत खूब

  8. मन को छूती हुई सुंदर अनुभूतिबेहतरीन रचना बधाई

  9. इंतज़ार जितना सुखद होता है उतना ही पीड़ा दायी भी,फिर भी उम्मीद पर दुनिया कयाम है 🙂

  10. खुबसूरत अभिवयक्ति…… .

  11. मजा भी है दर्द भी है इस इंतजार में….

  12. बिना किसी छोर के एक अंतहीन किस्सा

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