गतांक से आगे …………………
अब निशि मंझधार में फँसी थी जिसका कोई साहिल ना था. अब उसे समझ आ रहा था घर , परिवार , पति , बच्चों का महत्त्व. अब उसे लग रहा था कि वो कैसी झूठी मृगतृष्णा के पीछे भाग रही थी. रंग – रूप , धन -दौलत, ऐशो- आराम कोई मायने नहीं रखता जब तक अपना परिवार अपने साथ ना हो. परिवार के सदस्यों का साथ ही इंसान का सबसे बड़ा संबल होता है , उन्ही के कारण वो ज़िन्दगी की हर जंग जीत जाता है मगर आज निशि अपनी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी जंग हार चुकी थी. अगर घर के सदस्यों ने उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ाये रखा होता , उसके अकेलेपन के कुछ पलों को बाँटा होता तो शायद ये नौबत ना आती या फिर शायद निशि ने कुछ समझदारी रखी होती ,अपने बढ़ते क़दमों पर कुछ अंकुश लगाये होते तो उसे ये दिन ना देखना पड़ता क्यूंकि ये दिन तो हर औरत की ज़िन्दगी में आता है जब एक वक़्त वो अकेली पड़ जाती है मगर इसका ये मतलब तो नहीं ना कि हर औरत गलत राह पर चल पड़े ,उसे भी अपने उस वक़्त का सही उपयोग करना चाहिए था , ये सब बातें उसे मथ रही थीं. आज उसने अपने , अपनों को , उनके प्यार , विश्वास को चोट पहुंचाई थी जिसका शायद कोई प्रायश्चित नहीं था. शर्मिंदगी का अहसास उसे जीने नहीं दे रहा था. बेशक बच्चों को कुछ नहीं पता था मगर राजीव की निगाहों में बैठी अविश्वास की लकीर वो सहन नहीं कर पा रही थी . उसकी ख़ामोशी ही बिना कहे सब कुछ कह देती थी. राजीव की ख़ामोशी उसे हर पल तोड़ रही थी और साथ ही आत्मग्लानि का बोध उसके मानसिक संतुलन को बिगाड़ रहा था. निशि क्षण -प्रतिक्षण ज़िन्दगी से दूर जा रही थी क्यूंकि वो नहीं चाहती थी कि उसके बच्चों को कभी ज़िन्दगी में पता चले कि उम्र के ऐसे मोड़ पर जाकर उनकी माँ रास्ता भटक गयी थी और वो उससे नफरत करने लगें . राजीव की नफरत ही उसे जीने नहीं दे रही थी और अगर बच्चों के मन में भी यदि नफरत का अंकुरण फूट गया तो वो कैसे सहन करेगी, कैसे बच्चों से निगाह मिला पायेगी, क्या फिर कभी वो उनके किसी गलत काम पर उन्हें कुछ कहने की हिम्मत कर पायेगी ? ये सब बातें उसे विचलित कर रही थीं. अगर वो तलाक भी लेती है तो क्या वजह बताई जाएगी जब दिखने में सब कुछ सामान्य है तो और फिर क्या वो जी पायेगी अपने परिवार के बिना ?क्या उनके बिना उसका कोई अस्तित्व है ? ज़िन्दगी बोझ ना बन जाएगी?तब भी तो वो अकेलापन उस पर हावी हो जायेगा ?तब कहाँ जाएगी वो और क्या करेगी ?ये कुछ ऐसे प्रश्न थे जो उसकी अंतरआत्मा उससे पूछती और उसके पास इन सवालों का कोई जवाब ना होता .
एक ज़रा सी भूल कई बार हँसते -खेलते परिवार की तबाही का कारण बन जाती है . उस हद तक कोई ना तो सोच पाता है और ना ही चाहता है कि कोई ये कदम उठाये. बेशक भूल बहुत बड़ी नहीं थी कि जिसे माफ़ ना किया जा सके मगर आत्मग्लानि का बोझ सबसे बढ़कर होता है . शायद राजीव कुछ वक़्त बाद समझौता कर भी लेता मगर अपनी ही निगाहों में गिरना शायद सबसे बड़ा अभिशाप है. और जब इंसान खुद की निगाहों में गिर जाता है तब शायद ऐसा कदम उठाने की सोचता है क्यूंकि उसे चारों तरफ सिवाय अँधेरे के और कुछ नहीं सूझता. हर राह बंद दिखाई देती है . हर पल घुट – घुटकर जीना इंसान को भीतर ही भीतर तोड़ देता है फिर वो उन अहसासों से उबर नहीं पाता और ऐसा कदम उठाने को मजबूर हो जाता है .
और फिर इसी उहापोह में फँसी निशि ने वो कदम उठा लिया जो कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था . निशि ने आत्महत्या कर ली . सबने समझा डिप्रेशन में थी इसीलिए आत्महत्या कर ली मगर असल कारण सिर्फ राजीव जानता था और आज वो भी पछता रहा था क्यूंकि उसने इस स्थिति के बारे में तो कभी सोचा ही नहीं था . निशि की एक छोटी सी भूल ने पूरे परिवार को किस मोड़ पर पहुंचा दिया था जहाँ सिर्फ अँधेरा ही अँधेरा था.
समाप्त .