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Archive for मई, 2009

गंध महकती है

गंध महकती है
कभी तेरे अहसासों की
कभी तेरे ख्यालातों की
कभी अनछुई देह की
कभी अनछुए जज्बातों की
कभी बहकती साँसों की
कभी शबनमी आंखों की
कभी कुंवारे रुखसारों की
कभी मचलते शरारों की
कभी शबनमी मुलाकातों की
कभी लरजते अधखुले लबों की
कभी लहराते गेसुओं की
कभी बलखाती तेरी चालों की
कभी लहराते आँचल की
कभी मदमाती चितवन की
गंध महकती है तेरी
बस गंध महकती है

बेदर्द मौसम

मौसम का क्या है
बदलता ही रहता है
और फिर लौट कर
भी आता रहता है
मगर कुछ मौसम
ऐसे भी होते हैं
एक बार जो चले जायें
फिर कभी लौट कर नही आते
फिर कितना भी पुकारो
कितने ही पैगाम भेजो
बंजर जमीन की तरह
फिर वहां कोई फूल नही खिलता
बड़े बेदर्द मौसम होते हैं कुछ
यादों में ही बरसते हैं
यादों में ही उलझते हैं
कभी सर्द रातों की तरह
तो कभी धूप की चादर की तरह
कभी मौसमी बरसात की तरह
तो कभी पतझड़ में ठूंठ हुए
पेड़ की तरह
ये बेदर्द मौसम
सिर्फ़ दर्द देकर चले जाते हैं
ऊम्र भर का
लौट कर फिर न आने के लिए।

अंतर्द्वन्द

उदासियों ने आकर घेरा है
शायद किसी द्वंद का फेरा है
अंतर्द्वन्द से जूझ रही हूँ
आत्मा से ये पूछ रही हूँ
ये किन गलियों का फेरा है
ये किसके घर का डेरा है
कौन है जो नज़रों में समाया रहता है
और मिलकर भी नही मिलता है
ये किसकी तड़प तडपाती है
हर पल किसकी याद दिलाती है
ये किसकी छवि दिखाती है
और फिर मटमैली हो जाती है
न जाने किस भ्रमजाल में उलझ रही हूँ
किसका पता मैं पूछ रही हूँ
यही नही समझ पाती हूँ
रो-रो आंसू बहाती हूँ
किसकी गलियों में घूम रही हूँ
दर-दर माथा टेक रही हूँ
कोई भी ना समझ पाता है
किसका ठिकाना ढूंढ रही हूँ
ये किस द्वंद में फंस गई हूँ
ये किस द्वंद में डूब गई हूँ
किसकी राह मैं देख रही हूँ
किसकी चाह में उलझ रही हूँ
कुछ भी समझ न आता है
ये किन गलियों का फेरा है

एक दास्ताँ ये भी ……….भाग २

आज मौन को तोड़ती हूँ
और बताती हूँ तुम्हें
हम तो सिर्फ़ अहसास हैं
ख्यालों में आस पास हैं
रिश्ता नही कहूँगी इसे
वरना बंधन बन जाएगा
एक बेनामी सा अहसास है
तू कभी मेरा था ही नही
और न ही मैं कभी तेरी
फिर भी ख्यालों में अपने- अपने
हम दोनों पास-पास हैं
मैंने तो कोई वादा किया ही नही
कभी कोई कसम खायी ही नही
और तू जानता है ये
तुझे कभी चाहा भी नही
फिर भी एक अहसास है तू मेरा
जिसे खो भी नही सकती
और पा भी नही सकती
न तूने मुझे देखा
न मैंने तुझे देखा
ऐ मेरे बिन देखे अहसास
न भटक इस मृगतृष्णा में
तुझसे दूर होकर भी पास हूँ मैं
फिर भी न जाने क्यूँ
तुमने या कहो
तेरी चाहत ने खुदा बनाया मुझे
तेरे अनकहे जज़्बात
तेरी भटकती भावनाएं
तेरे खामोश अल्फाज़
तेरे दर्द की इम्तिहान कह जाते हैं
तेरी चाहत का इल्म करा जाते हैं
फिर क्यूँ तू उन्हें
शब्दों में ढालना चाहता है
शब्दों का जामा पहनाकर
इक नया रूप देना चाहता है
कुछ तार दिल से बंधे होते हैं
शब्द जहाँ गौन हो जाते हैं
बंधन दिल के होते हैं
शब्दों के नही
फिर क्यूँ तू मुझे अपनी
ख्याली चाहत में बांधना चाहता है
क्यूँ हर बात का इकरार चाहता है
कुछ बातें बिना किए भी होती हैं
कुछ चाहतें खामोश भी हुआ करती हैं
बिना किसी आडम्बर के
बिना किसी बंधन के
बिना किसी वादे के
और तुम हो कि
चाहत को बाँध रहे हो
शब्दों के तराजू में
तोल रहे हो
क्या हर बात का
इकरार जरूरी होता है
शब्दों में बांधने का
व्यापार जरूरी होता है
मेरे अनकहे जज्बातों को
तुझे समझना होगा
मुझे मुझसे छीनने का जूनून
तुझे छोड़ना होगा
अपने ख्यालों के बंधन में
न बांधना होगा
कुछ मेरे जज्बातों को भी
समझना होगा
चाहत के रंग को
बदलना होगा
मुझे खुदा बनाने वाले
अब तुझे ख़ुद बदलना होगा
क्या अपने खुदा की
एक बात नही मानोगे
सिर्फ़ अहसासों में
चाहत को समेटना होगा
दिल की बात को
जुबान पर न लाना होगा
खामोश रहकर चाहत को
निभाना होगा
तेरी चाहत न रुसवा कर दे मुझको
अब अपनी चाहत को
तुझे दफ़न करना होगा
अरमानों की कब्र सजानी होगी
क्या ये इम्तिहान दे पायेगा
इश्क के इम्तिहान दुनिया ने लिए
आज तेरा इम्तिहान है
तेरे इश्क का इम्तिहान है
जहाँ इश्क तुझसे
तेरी चाहत का
तेरे जूनून का
तेरे सब्र का
इम्तिहान लेगा
तेरी चाहत को
दोस्ती का कफ़न उढाकर
उसे एक नया रूप देगा
क्या इतना तू कर पायेगा
चाहत को दोस्ती में
बदल पायेगा
गर तू ऐसा कर पाया
तो तेरा नाम भी
इश्क की किताब में
अमर हो जाएगा

एक दास्ताँ ये भी …………..भाग १

न जाने कैसे और कब
तुमने ज़िन्दगी में दस्तक दी
धीरे धीरे खामोशी से
अपने जज्बात बयां करते रहे
तुम कहते रहे और
मैं सुनती रही
बिना कुछ पूछे
बिना कुछ जाने
तुम्हारे साथ बहती रही
तुम्हारे दिल की हर बात को
तुम्हारे नगमों में
तो कभी
तुम्हारी ग़ज़लों में
बार बार पढ़ती रही
तुम्हें जानने का
तुम्हारे जज़्बात पहचानने का
दावा करती रही
तुम्हारे अंदाजे बयां पर
मिटती रही
मेरी खामोशी को
तुम इकरार समझ लोगे
मेरे मौन को मेरा
इकरार समझ लोगे
मौन की भी अपनी
भाषा होती है
कभी इकरार की
तो कभी इंकार की
जानती हूँ मैं
आज मौन को शायद
तोड़ना होगा
अपने मौन को
परिभाषित करना होगा
जानती हूँ तुम तन का नही
मन का रिश्ता चाहते हो
मुझे अपनी प्रेरणा
बनाना चाहते हो
अपनी छवि देखी है मैंने
तुम्हारे हर गीत में
उस गीत में छुपे
हर दर्द में
हर शब्द में
हर भाव में
देह से परे
भावों के रिश्ते
कुछ खास होते हैं
जिन्हें न कोई
समझ पाता है
इसलिए आज
मौन को तोड़ना होगा
तुझे ये समझना होगा
ये सिर्फ़ और सिर्फ़
तेरे जज़्बात हैं
मुझे अपनी चाहत न मान
अपने मचलते हुए अरमानों में
न भटकना होगा तुझे
मैं तो सिर्फ़ एक पड़ाव हूँ …………………

क्रमशः ……………..

माँ ममता और बचपन

माँ की ममता एक बच्चे के जीवन की अमूल्य धरोहर होती है । माँ की ममता वो नींव का पत्थर होती है जिस पर एक बच्चे के भविष्य की ईमारत खड़ी होती है । बच्चे की ज़िन्दगी का पहला अहसास ही माँ की ममता होती है । उसका माँ से सिर्फ़ जनम का ही नही सांसों का नाता होता है । पहली साँस वो माँ की कोख में जब लेता है तभी से उसके जीवन की डोर माँ से बंध जाती है । माँ बच्चे के जीवन के संपूर्ण वि़कास का केन्द्र बिन्दु होती है । जीजाबाई जैसी माएँ ही देश को शिवाजी जैसे सपूत देती हैं ।

जैसे बच्चा एक अमूल्य निधि होता है वैसे ही माँ बच्चे के लिए प्यार की , सुख की वो छाँव होती है जिसके तले बच्चा ख़ुद को सुरक्षित महसूस करता है । सारे जहान के दुःख तकलीफ एक पल में काफूर हो जाते हैं जैसे ही बच्चा माँ की गोद में सिर रखता है ।माँ भगवान का बनाया वो तोहफा है जिसे बनाकर वो ख़ुद उस ममत्व को पाने के लिए स्वयं बच्चा बनकर पृथ्वी पर अवतरित होता है ।

एक बच्चे के लिए माँ और उसकी ममता का उसके जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान होता है । मगर हर बच्चे को माँ या उसकी ममता नसीब नही हो पाती । कुछ बच्चे जिनके सिर से माँ का साया बचपन से ही उठ जाता है वो माँ की ममता के लिए ज़िन्दगी भर तरसते रहते हैं । या कभी कभी ऐसा होता है कि कुछ बच्चों के माँ बाप होते हुए भी वो उनसे अलग रहने को मजबूर हो जाते हैं या कर दिए जाते हैं । ऐसे में उन बच्चों के वि़कास पर इसका बड़ा दुष्प्रभाव पड़ता है । कुछ बच्चे माँ की माता न मिलने पर बचपन से ही कुंठाग्रस्त हो जाते हैं तो कुछ आत्मकेंद्रित या फिर कुछ अपना आक्रोश किसी न किसी रूप में दूसरों पर उतारते रहते हैं । बचपन वो नींव होता है जिस पर ज़िन्दगी की ईमारत बनती है और यदि नींव डालने के समय ही प्यार की , सुरक्षा की , अपनत्व की कमी रह जाए तो वो ज़िन्दगी भर किसी भी तरह नही भर पाती ।

कोशिश करनी चाहिए की हर बच्चे को माँ का वो सुरक्षित , ममत्व भरा आँचल मिले जिसकी छाँव में उसका बचपन किलकारियां मारता हुआ ,किसी साज़ पर छिडी तरंग की मानिन्द संगीतमय रस बरसाता हुआ आगे बढ़ता जाए, जहाँ उसका सर्वांगीन विकास हो और देश को , समाज को और आने वाली पीढियों को एक सफल व सुदृढ़ व्यक्तित्व मिले ।

जिस मासूम को मिला न कभी
ममता का सागर
फिर कैसे भरेगी उसके
जीवन की गागर
सागर की इक बूँद से
जीवन बन जाता मधुबन
ममता की उस छाँव से
बचपन बन जाता जैसे उपवन
बचपन की बगिया का
हर फूल खिलाना होगा
ममता के आँचल में
उसे छुपाना होगा
ममत्व का अमृत रस
बरसाना होगा
हर बचपन को उसमें
नहलाना होगा

माँ के आँचल सी छाँव
गर मिल जाए हर किसी को
तो फिर कोई कंस न
कोशिश करे मारने की
किसी भी कृष्ण को
अब तो हर कंस को
मरना होगा और
यशोदा सा आँचल
हर कृष्ण का
पलना होगा
आओ एक ऐसी
कोशिश करें हम

जिस्म के रिश्ते

प्यार यहाँ होता है कहाँ
सिर्फ़ शरीरों का व्यापर होता है यहाँ
रोटी , कपड़ा और मकान के बदले
सिर्फ़ शरीरों के सौदे होते हैं यहाँ
सौदों का बाज़ार सजा है
जिस्म जहाँ व्यापार बना है
जरूरत के बाज़ार में सिर्फ़
जरूरतों के सौदे होते हैं
कीमत चुकाकर शरीरों की
आत्मा को बेचा जाता है
प्यार की कीमत न जाने कोई
शरीरों को जाना जाता है
जिस्म की भूख से पीड़ित जो
वो रूह की भूख को क्या जाने
ये शरीर के भूखे भेडिये
दिलों की आवाज़ कब सुन पाते हैं
शरीरों को चाहने वाले कब
प्यार को पहचान पाते हैं
जिस्मों के बाज़ार में
प्यार का कोई मोल नही
ख़ुद को मिटा देती है जो
उसके अरमानों का कोई मोल नही
जिस्म खुदा बन जाए जहाँ
वहां जज्बातों का मोल कहाँ
ये जिस्मों से बंधे जिस्मों के रिश्ते
जिस्मों के बाज़ार में ख़रीदे बेचे जाते हैं
जिस्मफरोशी की रूह भी काँपे जहाँ
ये इतनी क़यामत ढाते हैं
ये जिस्मों के रिश्ते
जिस्मों पर ही सिमट जाते हैं

तेरा नाम

मुझे आइना दिखाने वाले
मुझे मुझसे मिलाने वाले
कल तक तुझे था इंतज़ार
आज तुम बन गए हो मेरा प्यार
मेरे इस जनम को सजाने वाले
कल तक थे तुम अजनबी
आज तुम बन गए हो हमराही
मेरी रूह की प्यास बुझाने वाले
मेरी जन्मों की थकन मिटाने वाले
मेरी खामोशी को जुबान देने वाले
मेरे दर्द को भी पी जाने वाले
कल तक तुझे था प्यार
आज मेरी जुबान पर है
बस तेरा नाम , तेरा नाम, तेरा नाम …………………..

और तुम आज आई हो ……………

दोस्तों ,

आज मैं अपनी १५० वी पोस्ट डाल रही हूँ .आशा करती हूँ हमेशा की तरह इसे भी आपका प्यार मिलेगा।

सिर्फ़ एक चाह थी
जी भर कर तुम्हें देख पाता
दिल की बातें तुमसे कह पाता
कुछ तुम्हारी सुन पाता
कुछ अपनी कह पाता
उम्र गुजार दी हैं मैंने
तुम्हारे इसी इंतज़ार में
सिर्फ़ एक बार मिलन की आस में
तुमसे पहली बार मिलने की चाह में
तुम्हें निगाहों में भर लेने की आस में
अपने वजूद को तुममें ढूंढ पाता
हर पल के इंतज़ार का हिसाब
तुम्हें दिखा पाता
लहू की हर बूँद में लिखा
तुम्हारा नाम , तुम्हें दिखा पाता
सोचो ज़रा , कितना इंतज़ार किया होगा
इक उम्र गुजार दी मैंने
तेरे पिछले जनम के वादे पर
कि , अगले जनम मिलेंगे हम
और तुम आज आई हो …….
और मैं तुम्हें देख भी नही सकता
जब आंखों की रौशनी बुझ चुकी है
हाल – ऐ – दिल बयां भी नही कर सकता
शब्द हलक में अटक गए हैं
अर्थी भी सज चुकी है
बस , आखिरी साँस का इंतज़ार है
और तुम आज आई हो ………
मेरी रूह को सुकून पहुँचाने के लिए
या फिर से तडफाने के लिए
एक और जनम के इंतज़ार में
फिर दर-दर भटकाने के लिए
और तुम आज आई हो …………..

अनकहे ख्याल

कुछ ख्याल
आते आते
भटक जाते हैं
अपने ही दायरों में
सिमट जाते हैं
भावों को न
पकड़ पाते हैं
शून्य में ही कहीं
खो जाते हैं
कुछ कहते- कहते
ना जाने
क्या कह जाते हैं
ख्याल पर ख्याल
पलट जाते हैं
भावों के मंथन
की कौन कहे
यहाँ तो लब तक
आते- आते
अल्फाज़ बदल जाते हैं
एक भाव में
दूसरा भाव
उलझ जाता है
शब्दों में ना
बंध पाता है
भावों में बहते-बहते
शब्द भी खो जाते हैं
और फिर
कुछ ख्याल
अनकहे ही
रह जाते हैं