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Archive for मई, 2010

>यूँ आवाज़ ना दिया करो

>सुनो
यूँ आवाज़ ना दिया करो 
दिल की बढती धड़कन 
आँखों की शोखियाँ 
कपोलों पर उभरती 
हया की लाली
कंपकंपाते अधर 
तेरे प्यार की 
चुगली कर जाते हैं 
कभी ख्वाब तेरे
रातों में जगा जाते हैं
और चंदा की बेबसी से
सामना करा जाते हैं
तारे गिनते- गिनते 
कटती तनहा  रात 
भोर की लाली से
सहम- सहम जाती है 
मद्धम मद्धम बहती बयार
तेरी साँसों की 
सरगोशियाँ कर जाती है
तेरी इक आवाज़ पर
मोहब्बत का हर रंग
बसंत सा खिल जाता है 
बता अब कैसे 
मुट्ठी में क़ैद करूँ 
इस बिखरती खुशबू को 
बस तुम 
यूँ आवाज़ ना दिया करो 

>धागा हूँ मैं

>

धागा हूँ मैं
मुझे माला बना
प्रीत के मनके पिरो
नेह की गाँठें लगा
खुद को सुमरनी
का मोती बना
मेरे किनारों को
स्वयं से मिला
कुछ इस तरह
धागे को माला बना
अस्तित्व धागे का
माला बने
माला की सम्पूर्णता
में सजे
जहाँ धागा माला में
विलीन हो जाये
अस्तित्व दोनों के
एकाकार हो जायें

>श्यामा , अपना मुझे बना लेना

>    मैं भूल जाऊँ कान्हा , कुछ गम नहीं
    पर तुम ना मुझको भुला देना 
    श्यामा , अपना मुझे बना लेना
१) मैं तेरी जोत जलाऊँ या ना जलाऊँ 
    पर तुम ना मुझे भुला देना
   अपनी दिव्य ज्योति जगा देना
   कान्हा , अपना मुझे बना लेना 
२)मैं तुम्हें ध्याऊँ या ना ध्याऊँ 
   पर तुम ना मुझे भुला देना
   मेरा ध्यान निज चरणों में लगा लेना
   कान्हा , अपना मुझे बना लेना
३)मैं प्रीत निभाऊं या ना निभाऊं 
   तुम ना मुझे भुला देना
   प्रीत की रीत निभा देना
   श्यामा प्रेम का राग सुना देना 
   कान्हा, अपना मुझे बना लेना

>तेरे मन का मंदिर

>तेरे मन की 
खुली खिड़की 
में झाँकता 
अक्स मेरा 
तेरे मनोभावों 
की हर तह 
को खोलता
परत- दर- परत
तेरे अहसासों
को छूता 
ज्यों चाँदनी का
स्पर्श हो 
तेरे मन की 
हर तह में
प्रेम के अथाह
सागर की
अनगिनत
उछलती 
मचलती
टकराती 
और टूट कर
बिखरती 
लहरों का
खामोश 
रुदन
तेरे सूखे 
हुए आँसुओं
की कहानी 
सुनाता है
किसी परत में
दबे तेरे
असफल प्रेम 
की पुकार
का करुण 
क्रन्दन
तेरी आत्मा की
बेकली का
दीदार कराता है
और किसी 
परत में
तेरे दर्द की
पराकाष्ठा मिली 
जहाँ तूने
प्रेम की 
कब्रगाह में
वो बुत बनाया 
जिसकी खुशबू
के आगे 
पुष्प भी 
महकना छोड़ दे 
जिसकी 
शिल्पकारी में
शिल्पकार भी
मूर्ती गढ़ना 
छोड़ दे
बुतपरस्ती
का ऐसा 
मक़ाम बनाया
मुझे वहाँ 
खुदा ना मिला
बस तूने
मुझे ही 
खुदा बनाया
ये तेरे प्रेम
का नगर
तेरी मोहब्बत 
का मंदिर बना
जहाँ आकर
मेरा अक्स भी 
हार गया
और तेरे प्रेम के
बुत में समां गया

>बिना बात के भी शिकायत होती है

>बिना बात के भी शिकायत होती है
हुस्न वालों की भी अजीब फितरत होती है

कभी शिकवों की लम्बी फेहरिस्त होती है
कभी बिना फेहरिस्त के भी शिकायत होती है

हुस्न की ये अदा भी गज़ब होती है
जब शिकायत भी प्यार भरी होती है

तकरार में भी इकरार नज़र आता है
तब हुस्न  कुछ और निखर जाता है

शोख चंचल आँखों में खिले तबस्सुम 
हुस्न का हुस्न और खिला जाते हैं 

प्यार की तकरार की मिठास बढ़ा जाते हैं
रूठे हुस्न को मनाने की प्यास जगा जाते हैं

जब  इश्क क़दमों में झुका होता है
हुस्न का वो ही अंदाज़ तो कातिल होता है

>खुद से निगाह मिला ना पाया

>सुनो
उदासी का
लहराता साया
क्या तूने नहीं देखा?
जिसे कभी तू
कँवल कहा करता था
उस रुखसार पर
डला ख़ामोशी का
नकाब
हटाया तो होता
हर तरफ टूटी -बिखरी
निराशा में डूबी
आहें और ख्वाबों
को ही पाया होता
हर पग पर सिर्फ
ज़ख्मो के ही निशाँ
टिमटिमाये होते
हर तरफ तबाही का
मंजर ही पाया होता
और हर तबाही के लिए
खुद को ही कसूरवार
ठहराया होता
शायद इसीलिए
नकाब हटा ना पाया
सत्य के आईने में
खुद से निगाह
मिला ना पाया

>महिला ब्लॉगर्स का सन्देश जलजला जी के नाम

>कोई मिस्टर जलजला एकाध दिन से स्वयम्भू चुनावाधिकारी बनकर.श्रेष्ठ महिला ब्लोगर के लिए, कुछ महिलाओं के नाम प्रस्तावित कर रहें हैं. (उनके द्वारा दिया गया शब्द, उच्चारित करना भी हमें स्वीकार्य नहीं है) पर ये मिस्टर जलजला एक बरसाती बुलबुला से ज्यादा कुछ नहीं हैं, पर हैं तो  कोई छद्मनाम धारी ब्लोगर ही ,जिन्हें हम बताना चाहते हैं कि हम  इस तरह के किसी चुनाव की सम्भावना से ही इनकार करते हैं.

ब्लॉग जगत में सबने इसलिए कदम रखा था कि न यहाँ किसी की स्वीकृति की जरूरत है और न प्रशंसा की.  सब कुछ बड़े चैन से चल रहा था कि अचानक खतरे की घंटी बजी कि अब इसमें भी दीवारें खड़ी होने वाली हैं. जैसे प्रदेशों को बांटकर दो खण्ड किए जा रहें हैं, हम सबको श्रेष्ट और कमतर की श्रेणी में रखा जाने वाला है. यहाँ तो अनुभूति, संवेदनशीलता और अभिव्यक्ति से अपना घर सजाये हुए हैं . किसी का बहुत अच्छा लेकिन किसी का कम, फिर भी हमारा घर हैं न. अब तीसरा आकर कहे कि नहीं तुम नहीं वो श्रेष्ठ है तो यहाँ पूछा किसने है और निर्णय कौन मांग रहा है? 

हम सब कल भी एक दूसरे  के लिए सम्मान रखते थे और आज भी रखते हैं ..

                            

 अब ये गन्दी चुनाव की राजनीति ने भावों और विचारों पर भी डाका डालने की सोची है. हमसे पूछा भी नहीं और नामांकन भी हो गया. अरे प्रत्याशी के लिए हम तैयार हैं या नहीं, इस चुनाव में हमें भाग लेना भी या नहीं , इससे हम सहमत भी हैं या नहीं बस फरमान जारी हो गया. ब्लॉग अपने सम्प्रेषण का माध्यम है,इसमें कोई प्रतिस्पर्धा कैसी? अरे कहीं तो ऐसा होना चाहिए जहाँ कोई प्रतियोगिता  न हो, जहाँ स्तरीय और सामान्य, बड़े और छोटों  के बीच दीवार खड़ी न करें.  इस लेखन और ब्लॉग को इस चुनावी राजनीति से दूर ही रहने दें तो बेहतर होगा. हम खुश हैं और हमारे जैसे बहुत से लोग अपने लेखन से खुश हैं, सभी तो महादेवी, महाश्वेता देवी, शिवानी और अमृता प्रीतम तो नहीं हो सकतीं . इसलिए सब अपने अपने जगह सम्मान के योग्य हैं. हमें किसी नेता या नेतृत्व की जरूरत नहीं है.
 

इस विषय पर किसी  तरह की चर्चा ही निरर्थक है.फिर भी हम इन मिस्टर जलजला कुमार से जिनका असली नाम पता नहीं क्या है, निवेदन करते हैं  कि हमारा अमूल्य समय नष्ट करने की कोशिश ना करें.आपकी तरह ना हमारा दिमाग खाली है जो,शैतान का घर बने,ना अथाह समय, जिसे हम इन फ़िज़ूल बातों में नष्ट करें…हमलोग रचनात्मक लेखन में संलग्न रहने  के आदी हैं. अब आपकी इस तरह की टिप्पणी जहाँ भी देखी जाएगी..डिलीट कर दी जाएगी.

>ख्वाब को पकड़ना चाहता हूँ………..

>तेरा मेरा यूँ मिलना
जैसे आकाश का 
धरती को तकना
पूजन , अर्चन,वंदन बन 
आई हो मेरे जीवन में
जब से दीदार किया तेरी
रिमझिम सी  इठलाती ,
मुस्काती चितवन का
 होशोहवास सब गुम हो गए
तुम्हारे ही ख्यालों में
ना जाने कहाँ खो  गए
ये कैसी मदहोशी छाई है 
तुम्हें पाने की चाह
दिल  में समायी है
जानता हूँ छू नहीं सकता
फिर भी आस की लौ 
जलाई है 
 ख्वाबों को तुम्हारे प्रेम की
पैरहन पहनाई है
तुम पैरों में महावर लगाये
आओगी इक दिन जीवन में 
इसी आस की रंगोली रोज
दिल की चौखट पर सजाता हूँ 
तुम्हारी चूड़ियों की खनक
जब  दरवाज़ा मेरा खड्काएगी 
तब कैसे दिल को सम्हालूँगा
ये सोच -सोच घबराता हूँ
जब भी तस्वीर निहारा करता हूँ
अधरामृत पान की
लालसा मुखर हो जाती है
जब सामने तुम्हारा वजूद होगा 
तब कैसे खुद को सम्हालूँगा
ये सोच -सोच शरमाता हूँ
मगर फिर भी प्रेम का
प्रतिकार तुम ही से चाहता हूँ
ख्वाब में ही सही मगर 
अपने इंतज़ार के मंदिर में
तुझे अपने ख्वाब की देवी बना 
तेरी वंदना कर
विजय रथ पर सवार हो
ख्वाब के प्रेम क्षितिज पर
मिलना चाहता हूँ
जानता हूँ तुम हकीकत नहीं
ख्वाब हो मेरा फिर भी
ख्वाब को पकड़ना चाहता हूँ………..

>मैं भीग जाता हूँ

>जब भी 
तेरे गेसुओं से 
टपकती बूँदें
गिरती हैं मेरे 
ह्रदय नभ पर
मैं भीग जाता हूँ 

जब भी तेरे अधरों पर
कुछ कहते -कहते
लफ्ज़ रुक जाते हैं
मैं भीग जाता हूँ

जब भी तेरी 
पेशानी पर
चुहचुहाती बूँदें
चाँदनी सी आभा
बिखेरती हैं
मैं भीग जाता हूँ

जब भी तेरे
दिल की धडकनें
मौसम – सी 
बदलती हैं
मैं भीग जाता हूँ

जब भी तेरा
मुखड़ा 
ओस की बूँद सा
सतरंगी आभा 
बिखेरता है
मैं भीग जाता हूँ

प्रश्नचिन्ह?

हर शख्स
एक प्रश्नचिन्ह सा 
नज़र आता है
ना जाने 
कितने सवालों
से जूझता 
हल की तलाश
में निकला 
प्रश्नों के 
व्यूह्जाल में
उलझता जाता है
और प्रश्नों के 
जवाब में
प्रश्नों से ही
टकराता है 
और फिर
प्रश्नों के 
मकडजाल में
फँसा खुद
एक दिन 
प्रश्नचिन्ह
बन जाता है