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Archive for the ‘अनकही’ Category

ख्वाब

मैंने एक ख्वाब देखा है ,चाहतों का बाज़ार देखा है,
यह कौन सी मंज़िल है,जो मिल कर भी नहीं मिलती ,
हर तरफ एक खामोशी सी छाई है , दर्द है तनहाई है,
यह कौन सा मुकाम है जिन्दगी का, जहाँ कुछ नहीं मिलता ,
सिर्फ ख्वाबों को टूटते देखा और जिन्दगी को हाथ से फिसलते देखा ,
अब इस दौर मैं कैसे ख्वाबों को सजाऊँ ?
किसे आवाज़ दूं और किसे बुलाऊं ?