ख्वाबों के घरोंदे
आज कुछ
ख्वाबों को
दिल की
धरती पर
बोया है
आशाओं के
बीजों को
दिल की मिटटी में
कुछ ऐसे
बो दिया
कि जैसे कोई
आशिक
अपनी महबूबा
की हसरत में
ख़ुद को
मिटा देता हो
अब इसमें
हर सपने की
एक-एक
कणिका को
खाद बनाया है
जैसे कोई
स्वर्णकार
किरच-किरच
सोने की
संभाले जाता हो
और उसमें
दिल के हर
अरमान की
बूँद – बूँद का
पानी दिया है
जैसे कोई
मूर्तिकार
अपनी शिल्प में
आखिरी हीरा
जड़ रहा हो
अब तो बस
इंतज़ार है
उस पल का
जब आशाओं की
फसल लहलहाएगी
दिल की धरती भी
महक-महक जायेगी
हर ख्वाब को
उसकी ताबीर मिल जायेगी