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Archive for जुलाई, 2009

ख्वाबों के घरोंदे

आज कुछ
ख्वाबों को

दिल की
धरती पर
बोया है
आशाओं के
बीजों को
दिल की मिटटी में
कुछ ऐसे
बो दिया
कि जैसे कोई
आशिक
अपनी महबूबा
की हसरत में
ख़ुद को
मिटा देता हो
अब इसमें
हर सपने की
एक-एक
कणिका को
खाद बनाया है
जैसे कोई
स्वर्णकार
किरच-किरच
सोने की
संभाले जाता हो
और उसमें
दिल के हर
अरमान की
बूँद – बूँद का
पानी दिया है
जैसे कोई
मूर्तिकार
अपनी शिल्प में
आखिरी हीरा
जड़ रहा हो
अब तो बस
इंतज़ार है
उस पल का
जब आशाओं की
फसल लहलहाएगी
दिल की धरती भी
महक-महक जायेगी
हर ख्वाब को
उसकी ताबीर मिल जायेगी

यादें

कभी कभी जरूरतें याद ले आती हैं
वरना याद किसी को किसी की कब आती है

यादों में बसर किसी की तभी किया करते हैं
जब कोई किसी के दिल में घर किया करते हैं

यादों के सहारे ज़िन्दगी गुजारने वाले
ऐसे चेहरे कम ही हुआ करते हैं

किसी की याद में जीने मरने वाले
न जाने किस मिटटी के बना करते हैं

यादों की दहलीज पर पाँव रखते ही
न जाने कितने नश्तर सीने में चुभा करते हैं

शाम होते ही यादों की अर्थी सजा लेते हैं
रात भर यादों की चिता में जला करते हैं

ठहरा हुआ इंतज़ार ………………….एक प्रेम कथा

कल की सी बात लगती है
याद है तुम्हें प्रिये
तेरा आना जीवन में मेरे
ज्यों बहारों ने डेरा डाला हुआ हो
छुप -छुपकर कनखियों से
खिड़की के झरोखों से वो तकना मुझे
चांदनी रात में घंटों इंतज़ार करना
सिर्फ़ एक बार देखने की चाहत में
वो पल पल का हिसाब रखना तेरा
यादों के तारों को झंझोड़ जाता है
कभी प्रेम का इजहार किया नही
फिर भी प्रेम के हर रंग को जिया
अंखियों के मौन निमंत्रण को
मौन में ही संजो लिया
तन की प्यास कभी जगी ही नही
मन के प्यासे प्रेमी हम
प्रेम – वंदन में पगे रहे
ख्वाबों की चादर बुनते रहे
प्यार के मोती टांकते रहे
मेरे जिस्म , मेरे अधरों ,
मेरे गेसुओं पर कोई
कविता कभी लिखी ही नही
मगर फिर भी बिना कहे
प्रेम के हर अहसास से गुजरते रहे
इन्द्रधनुषी रंगों से प्रेम रंग में रंगते रहे
कल की सी बात लगती है
याद है तुम्हें प्रिये
फिर एक दिन तुम
मेरे प्रणय – निवेदन को भुला
मातृभूमि की पुकार पर
अपने विजय-रथ पर सवार हो
अपने हर ख्वाब को ,उस पर टंगे मोतियों को
चांदनी रात की परछाइयों को
यादों के दामन में संजो कर
देशभक्ति का कफ़न उढाकर चले गए
और मैं …………………………
तेरे विरह की अग्नि में जलती रही
पर तेरे पथ की न शिला बनी
पल – पल युगों सा निष्ठुर बन गया
कभी चांदनी रात में
तारावली की अनन्य घाटी में
तेरे दीदार को तरसती रही
कभी पतझड़ सी मुरझाती रही
तेरे आने की आस में
दिल को मैं समझाती रही
और फिर एक दिन ………….
वो मनहूस ख़बर आई
जीवन का हर रंग उडा ले गई
ये कैसे हो सकता है !
जब धड़कन चल रही हो
तो दिल कैसे रुक सकता है
जब साँस मेरी चल रही हो
तो मौसम कैसे बदल सकता है
मैं न समझ पाई कुछ
तेरे इंतज़ार में इक उम्र गुजार दी मैंने
ज़माने ने ‘बावरी’ नाम दे दिया
और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया
अब दर-दर भटकती फिरती थी
सिर्फ़ तुझे खोजती फिरती थी
तेरे ही नाम की माला जपती थी
कभी तेरे ख्यालों से खेलती थी
कभी तेरी याद से उलझती थी
सीने के दर्द को मैं
ज़हर बनाकर पीती थी
मगर फिर भी
साँस गर मेरी चलती है तो
मौजूद है तू कहीं न कहीं
बस इसी आस में जीती थी
सदियाँ गुजर गयीं यूँ ही सूनी
कोई भी सावन मेरा
कभी न हरा हो पाया
और पतझड़ ने जीवन में
अपना डेरा लगा लिया
और उम्र के एक पड़ाव पर आकर
जब आंखों के सतरंगी सपने सारे
चूर – चूर हो चुके
आस का दामन भी जब
लहू सा रिसने लगा
तब एक दिन अच्चानक तुमने
मेरे जीवन में ठहरे हुए
अमावस को दूर करते हुए
अपनी मोहब्बत की चांदनी बिखेरते हुए
मेरे विश्वास को अटल करते हुए
बरसों की प्रीत को
अपने प्रेम की चादर उढाकर
मेरी बरसों से सूनी मांग में
अपने अनुपम प्रेम का सिन्दूर लगाकर
मुझे अपनी प्राणप्रिया बनाकर
हमारे चिर-प्रतीक्षित प्रेम को अमर कर दिया

मचलते अरमान

दोस्तों
जो लिखने जा रही हूँ उसके लिए मैं रूपचंद्र शास्त्री जी की शुक्रगुजार हूँ । मैं इस पोस्ट में १-२ जगह अटक गई थी तो उनकी सहायता से ये पोस्ट पूरी हो पाई। मैं शास्त्री जी की आभारी हूँ उन्होंने अपना कीमती समय दिया ।

नूतन नवल कुसुम खिले हैं
अमल धवल रंग में मिले हैं
सावन की रिमझिम फुहारों सा
मन मयूर भी नृत्य किए है
किसी के आने का पैगाम लिए हैं
जीवन को मदमस्त किए है
जागृत में भी स्वप्न दिखे है
मौसम भी अलमस्त किए है
बादल बिजुरिया चमक रहे हैं
अरमान दिलों में मचल रहे हैं
किसी के साथ को तरस रहे हैं
तन मन को भिगो रहे हैं
न जाने कैसे फंद पड़े हैं
उलझ उलझ का सुलझ रहे हैं
मन का मीत आज आ रहा है
इसीलिए हम संवर रहे हैं

बिना कारण ही

बिना कारण भी
दिल उदास होता है
बिना कारण भी
कोई आस – पास होता है
कभी ख्यालों में
दस्तक देता है
कभी ख्वाबों में
दिखाई देता है
बिना कारण भी
नज़रों को धोखा होता है
पलकों की चिलमन में
बिना कारण भी
कोई क़ैद रहता है
पलकों के गिरने उठने की गति
सांसों की डोर ठहरा जाती है
बिना कारण ही
कई बार ऐसा भी होता है
साँसे थम सी जाती हैं
नब्ज़ भी रुकने लगती है
मगर बिना कारण
तब भी दिल धड़कता रहता है
किसी की आहट पर
बिना कारण ही
भटकता रहता है
कभी जज़्बात लरजने लगते हैं
कभी अरमान बहकने लगते हैं
बिना कारण ही
कभी जीवन महकने लगता है
कई बार ऐसा भी होता है
बिना कारण ही
कई बार ऐसा भी होता है

ज़िन्दगी तू एक अबूझ पहेली है

ज़िन्दगी
तू एक अबूझ पहेली है
जितना सुलझाओ
उतनी उलझती है
कभी पास लगती है
तो कभी दूर
इतनी दूर
कि जिसका
पार नही मिलता

ज़िन्दगी
तू एक ख्वाब है
कभी सब सच लगता है
तो कभी ख्वाब सी
टूटती बिखरती है

ज़िन्दगी
तू एक मौसम है
कभी बसंत सी महकती है
तो कभी शिशिर सी
जकड़ती है
कभी सावन सी
रिमझिम बरसती है
तो कभी ग्रीष्म सी
दहकती है

ज़िन्दगी
तू एक भंवर है
जिसके अथाह जल में
हर घुमाव पर
सिर्फ़ और सिर्फ़
डूबना ही है
अनन्त में
खोने के लिए

ज़िन्दगी
तू सिर्फ़ ज़िन्दगी है
न ख़ुद जीती है कभी
न रूकती है कभी
बस सिर्फ़ और सिर्फ़
चलती ही रहती है
एक अनदेखी
अनजानी
दिशा की ओर
मंजिल की तलाश में
और मंजिल
रेगिस्तान में पानी के
चश्मे की तरह
बस कुछ दूर और
कुछ दूर और
दिखाई देती है
मगर
न रेगिस्तान में
कभी पानी मिलता है
और न ही कभी
ज़िन्दगी को मंजिल

सच ज़िन्दगी
तू एक अबूझ पहेली है

नदिया की रवानी अभी देखी कहाँ है

तूने नदिया की रवानी
अभी देखी कहाँ है
बहते पानी की मदमस्त जवानी
अभी देखी कहाँ है
बलखाती ,मदमाती , अल्हड नदिया की
लहरों से छेड़खानी
अभी देखी कहाँ है
लहरों के गीतों पर
उछलती नदिया की
अंगडाइयां अभी देखी कहाँ हैं
तूफानों के साये में
पलने वाली नदिया की
तूफानों को बहा ले जाने की अदा
अभी देखी कहाँ है
तूने नदिया की रवानी
अभी देखी कहाँ है

दिल की खोज

उदास है दिल
न जाने क्यूँ
किसे खोजता है
किसकी तलाश है
शायद ये भी अब
किसी गहरे
सागर में डूब
जाना चाहता है
शायद ये भी
सागर की तलहटी में
छुपे किसी अनमोल
मोती की तलाश में है
या फिर शायद
ये भी सागर के अंतस की
अनन्त गहराई में
खो जाना चाहता है
जहाँ खुद को पा सके
कुछ पल अपने लिए
सुकून के खोज सके
आख़िर दिल दिल ही है
कब तक सब कुछ झेलेगा
कभी तो खुद को भी टटोलेगा
कभी तो अपने को भी खोजेगा
इस दिल की पीड़ा को
कोई क्या समझेगा
दिल भी आख़िर दिल ही है
कभी तो जीना सीखेगा
कब तक खिलौना बन भटकेगा
अब तो खुद के लिए भी
एक किनारा ढूंढेगा
कहीं तो ठोर पायेगा
और तब शायद
उसका वजूद भी
उसमें ही सिमट जाएगा

कुछ ख्याल

लाश का मेरी
जो चाहे करना यारों
मैं नही पूछने
आने वाला
जिंदा हूँ जब तलक
जी लेने दो
मैं नही यहाँ
अमर होने वाला

वो

एक वो थी
कौन ?
जिसे कभी देखा नही
फिर ?
फिर भी उसे चाहा
क्यूँ ?
पता नही
क्या था उसमें ?
मगर जो था
वो शायद या
सिर्फ़ मेरा था

जिसने चाहा ,शरीर को चाहा
मुझे तो किसी ने चाहा ही नही
जिसने पाया शरीर को पाया
मुझे तो किसी ने पाया ही नही
ये रूप के लोलुप भंवरों को
कभी प्रेम रंग भाया ही नही

शब्दों का आमंत्रण

शब्दों के आमंत्रण पर
मैं बिन डोर
खिंची चली आती हूँ
शब्दों के सागर में फिर
बिन पतवार
नाव चलाती हूँ
कभी डूबती हूँ
कभी उतराती हूँ
तो कभी शब्दजाल के
भंवर में फंस जाती हूँ
शब्दों की आँख मिचोनी में
कभी शब्द विलीन हो जाते हैं
तो कभी मैं कहीं खो जाती हूँ
फिर शब्द खोजते हैं मुझको
और मैं शब्दों की चादर
ओढ़ सो जाती हूँ
शब्दों के संसार में
बिन पहचाने
शब्दों को खोजने जाती हूँ
शब्दों की गहन भाषा को
मैं बिन जाने भी
जान जाती हूँ
कभी शब्द मेरे हो जाते हैं
कभी मैं शब्दों की हो जाती हूँ
कभी शब्द मुझको छूते हैं
कभी मैं शब्दों में खो जाती हूँ
इस शब्दों के अनोखे खेल में
मैं शब्दों से लाड लड़ती हूँ
शब्दों के मीठे आमंत्रण पर मैं
बिन डोर खिंची चली आती हूँ