कश्ती
तूफानों को सीने में दबाये रहते हैं
हर पल भंवर में फंसे रहते हैं
आदत सी हो गई है अब तो
डूब डूब कर पार उतरने की
यह कश्ती है जज्बातों की
आंसुओं का अथाह सागर है
भावनाओं के तूफानों में
कश्ती जिंदगी की बार बार
तूफानों से लड़ते हुए
कभी भंवर में फंसते हुए
तो कभी बाहर नीकलते हुए
साहील तक पहुँचती है