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अब नही होगा कोई पुनर्गठन
जानती हूँ ………..
कुछ बचे तो होता है
पुनर्गठन …………
मगर जहाँ कुछ बचा ही ना हो
हाथ से लकीरें भी
छिन गयी हों
लाश से कफ़न भी
छिन गया हो
दीपक से लौ
छिन गयी हो
आसमाँ से सूरज
और धरती से वायु
छिन गया हो
वहाँ तो सिर्फ
दूर दूर तक
भयावह सन्नाटे
चीखते हैं
और सन्नाटों की चीखें
सन्नाटों में ही
दफ़न हो जाती हैं
बिना कोई आवाज़ किये
बिना अपनी पहचान दिए
तो कहो फिर
किसका हो पुनर्गठन ?
और कैसे ?
यहाँ तो आसमाँ बचा ही नहीं
फिर दिन कैसे ढलेगा
और शाम कैसे उतरेगी
सात फेरों की अग्नि
में होम हुए उस
नाम वाले बेनाम रिश्ते में
सुबह तो कब की
दफ़न हो चुकी है

Comments on: ">यहाँ तो आसमाँ बचा ही नहीं" (36)

  1. >आदरणीय वन्दना जीनमस्कार !हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

  2. >नाम वाले बेनाम रिश्‍ते में…बेहतरीन शब्‍द रचना ।

  3. >हरे राम राम,ये तो प्रलय के से लक्षण दिखलाई पडतें हैं वंदनाजी.आजकल आपकी लेखनी बहुत ही डराने लगी है.कुछ शुभ शुभ स्वप्न भी देखिये ना.

  4. >जीवन के अन्तःस्थल तक पहुचना हर इंसान का ख्वाब होता है, (अब नही होगा कोई पुनर्गठन /जानती हूँ ………../कुछ बचे तो होता है पुनर्गठन …………/मगर जहाँ कुछ बचा ही ना हो) दार्शनिक रूप से कहें या फिर कवित्त सौंदर्य, ये कविता सिर्फ भावों की …अभिवयक्ति नहीं, वरन एक पूर्ण जीवन दर्शन है, जिसे कहने के लिए तुलसीदास ने रामचरित मानस को रचा, श्री कृष्ण को कुरुक्षेत्र जाना पडा अर्जुन का सारथी बन, उसे वन्दना ने बस यूं ही कह दिया. कितना आसान है उनके लिए काव्य….., (सात फेरों की अग्नि/ में होम हुए उस/ नाम वाले बेनाम रिश्ते में/ सुबह तो कब की/ दफ़न हो चुकी है) जीवन हर भंगिमा को इस कदर गहराई से व्यक्त करती हैं की मानों खुद ही जीवन के रंगमंच पर ये अभिनीत कर रही हों. मैं आज इस सदी की सर्वोत्कृष्ट रचना से रूबरू हुआ हूँ, इस पर टिप्पणी करना मेरे बस में नहीं, काव्य की इतनी गहरी समझ और सोच भी नहीं, फिर जो बना कह दिया…… शब्द कम पड़ते को कोई बात नहीं, आज पहली बार वाक्य विन्यास में भी काफी सोचना पडा.

  5. >यहाँ तो आसमाँ बचा ही नहींफिर दिन कैसे ढलेगाऔर शाम कैसे उतरेगीसात फेरों की अग्निमें होम हुए उसनाम वाले बेनाम रिश्ते मेंसुबह तो कब कीदफ़न हो चुकी है वर्तमान समय में आसमान न बचना इंसान के मन में संकीर्णता पैदा होने के कारण है ….जब इंसान के मन में खुलापन रहा ही नहीं तो फिर सारे रिश्ते …धीरे धीरे रिस जाते हैं …और जिन्दगी संवेदना हीन होते हुए अनाम हो जाती है ….बहुत सुन्दरता से आपने इस भाव को अभिव्यक्ति दी है …आपका आभार

  6. >इन दिनों आपकी कविताओं का फलक इतना व्यापक हो रहा है कि रिश्तों की समस्त श्रृष्टि उसमे समा रही है… अभिव्यक्त हो रही है.. बहुत बढ़िया…

  7. >भयावह सन्नाटे का आक्रोश व्यक्त हुआ है।अर्थ गम्भीर रचना!!

  8. >कभी कभी सब कुछ खो जाता है … तो गठन आसान नही होता .. अच्छा लिखा है …

  9. >बहुत खूब…..आसमान ही नहीं बचा….सर से छत ही छीन गयी…..लाजवाब|

  10. >सात फेरों की अग्निमें होम हुए उसनाम वाले बेनाम रिश्ते मेंसुबह तो कब कीदफ़न हो चुकी हैकरुण वेदना ….

  11. >यहाँ तो आसमाँ बचा ही नहींफिर दिन कैसे ढलेगाऔर शाम कैसे उतरेगीसात फेरों की अग्निमें होम हुए उसनाम वाले बेनाम रिश्ते मेंसुबह तो कब कीदफ़न हो चुकी हैबहुत सुन्दर पँक्तियाँ हैं ………मेरे मन को छू गई

  12. >जब दूसरों की स्वच्छन्दता के आसमान को खाने में हम लग जाते हैं तो किसी का आसमान नहीं बचता है।

  13. >उफ़ इतना कुछ हो गया..क्या क्या लिखने लगी हैं आजकल 🙂 पर है बहुत सशक्त .

  14. >और सन्नाटों की चीखेंसन्नाटों में हीदफ़न हो जाती हैंबिना कोई आवाज़ कियेबिना अपनी पहचान दिएतो कहो फिरकिसका हो पुनर्गठन ?और कैसे ?यहाँ तो आसमाँ बचा ही नहींफिर दिन कैसे ढलेगाऔर शाम कैसे उतरेगीसात फेरों की अग्निमें होम हुए उसनाम वाले बेनाम रिश्ते मेंसुबह तो कब कीदफ़न हो चुकी हैbehatreen lekhanaur shavd rachana.

  15. >बेहतरीन भाव और खूबसूरत शब्दों का संयोजन…

  16. >ऐसा महसूस हुआ मनो सुनामी के बाद के विकराल स्वरुप को चित्रित किया गया हो। अद्भुत !

  17. >isko kah sakte hain ek bolti hui rachna.ek ek shabd bol raha hai.yahi is rachna ki khaasiyat hai.gahan abhivyakti ki is rachna ke liye dheron badhaai.

  18. >यहाँ तो आसमाँ बचा ही नहींफिर दिन कैसे ढलेगाऔर शाम कैसे उतरेगीसात फेरों की अग्निमें होम हुए उसनाम वाले बेनाम रिश्ते मेंसुबह तो कब कीदफ़न हो चुकी है बहुत ही प्रभावशाली रचना है… एक एक पंक्ति दिल की तह तक जाती है…….

  19. >यहाँ तो आसमाँ बचा ही नहींफिर दिन कैसे ढलेगाऔर शाम कैसे उतरेगीसात फेरों की अग्निमें होम हुए उसनाम वाले बेनाम रिश्ते मेंसुबह तो कब कीदफ़न हो चुकी है शाम अभी बाकी है दफ़न होने के लिए, फिर रात आयेगी , फिर आयेगा सवेरा , इन्द्रधनुषी रंगों से प्रस्फुटित तब खिलेंगे फूल आयेंगी बहारें , प्रकृति निराश नहीं करती किसी को. वंदना जी , बेहतरीन मर्मान्तक शब्दांकन के लिए आपका अभिनन्दन

  20. >बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति!

  21. >Aaah! Phirbhee kahungee,waah!

  22. >एक बहुत अच्छी रचना, धन्यवाद

  23. >जिंदगी की सच्चाइयों को बड़ी खूबसूरती से बयाँ करती हुई आपकी रचना है |

  24. >अंतर्वेदित एहसास और मिथ्या आडम्बर से विद्रोह की छटपटाहट ….

  25. >बेहतरीन भाव और खूबसूरत शब्दों का संयोजन प्रभावशाली रचना

  26. >आपने अपनी कविता द्वारा जीवन की बात बताई है … आधुनिक समाज का जीवन … उलझनों का जीवन …

  27. >सन्नाटे को चीड़ देने वाली रचना ..प्रभावी …

  28. >बहुत सुंदर…मन के भाव जो स्पष्टता लिए हैं…..वो बेहतरीन हैं….

  29. >एक बहुत अच्छी रचना के लिए बधाई।

  30. >avandana ji sarv pratham to dil se dhnyavaad aapka jo aapne mere blog par aakar apna bahumuly samarthan duya sach! badi hi prasnnta hui .aapki kavita darshnikta liye hue hai .bahut hi gahrai se aapne shabdo ka jo gath-badhan kaiya vah waqai bahut hi kabile tarrif hai .bahut hi gahan manan aur chitan ke baad hi aapne apni kavita ko itne gahrai se likh kar use vistaar diya hai.bahit ho gahan abhivykti sepurn aapki is behatreen post ke liye hardik badhai. poonamidhar kuchh dino se net par koi prblem ho rahi thi .kahi bhi koi bhi comments post nahi ho pa rahe the .kal se kuchh kam karna shuru kiya hai kb daga de jaye koi bharosa nahi.isiliye subah ke sadhe paanch baje se hi net par chipak gai hun .aakhir apne aadarniy v snehi jan ko tippni jo dalni hai .sheshhh -shubh poonam

  31. >एक विशेष भावदशा में सृजित इस कविता में आवेगपूर्ण आक्रोश व्यक्त हुआ है।यह भावगंभीर कविता बहुत कुछ सोचने के लिए विवश कर रही है।

  32. >बेहतरीन अभिव्यक्ति!

  33. >तो कहो फिरकिसका हो पुनर्गठन ?और कैसे ?यहाँ तो आसमाँ बचा ही नहींफिर दिन कैसे ढलेगाऔर शाम कैसे उतरेगीgahri chinta darshati hui rachna ,likha bahut sundar hai

  34. >यहाँ तो आसमाँ बचा ही नहींफिर दिन कैसे ढलेगाऔर शाम कैसे उतरेगीसात फेरों की अग्निमें होम हुए उसनाम वाले बेनाम रिश्ते मेंसुबह तो कब कीदफ़न हो चुकी है शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी मार्मिक रचना ….बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी इस खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

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