ज्योतिपर्व प्रकाशन से प्रकाशित “शब्दों की चहलकदमी” काव्य संग्रह का संपादन सत्यम शिवम के हाथों हुआ जिसमें उन्होने 40 कवियों के भावों को एक माला में पिरोया है और हर मोती इस माला में गुंथकर खास हो गया है । यूं तो ये सारा ब्रह्माण्ड शब्द की ही उपज है , शब्द ही बीज है ब्रह्मनाद का और उस पर शब्दों की चहलकदमी जब होती है तो संगीतमय रिदम अपने आप दिलों पर अपनी झंकार छोड़ जाती है बस वैसा ही इस संग्रह के लिए कहा जा सकता है .
आदर्शिनी श्रीवास्तव की “विनय पत्रिका बन जाऊं , तुम क्यों नहीं ,बंद करो ये मायाजाल , गाँव का गलियारा “ कवितायेँ जैसे दिनकर की प्रथम उजास सी चेतना पर छा जाती हैं जहाँ शब्द स्वयं संगीत बन अंतस को भिगो जाती हैं फिर चाहे प्रकृति हो या प्रेमी या ईश्वर या शहर और गाँव के रहन सहन का अंतर सबका चित्रण बखूबी किया है .
अंजू चौधरी की हाँ मैं एक आम इंसान हूँ कविता आम इन्सान की जिजीविषा को ही दर्शाती है कैसे आम इन्सान बिना हिसाब किताब लगाये आगे बढ़ता जाता है अपने वक्त की सलीब पर लटका फिर चाहे ज़िन्दगी में कितनी ही दुश्वारियां क्यों न आयें और उन सबको लांघते हुए क्यों न एक लम्बा मौन धारण करना पड़े कभी अपने लिए तो कभी अपनों के लिए फिर चाहे वो नारी ही क्यों न हो और यही है जीवन की रीती , जीवन की गति सुर , लय , ताल कितनी अलग होती जाये मगर संगीत फिर भी रिदम में ही बजता है .
कविता विकास की ज़िन्दगी ढूंढती है अपना ठिकाना कभी सपाट राहों पर तो कभी भंवर में फंसकर तो कभी ज़ख्म खाती अपने मायने बदल लेती है फिर भी मन का पंछी अपनी बेचारगी में कैसे फ़डफ़डाता है और नए दिन की आस में सांझ का भी एक एक पल सार्थकता से जीने को प्रेरित हो जाता है क्योंकि वो जानता है सत्य हमेशा अटल रहता है फिर चाहे सत्य की खोज में भटका प्राणी कितना जूझे आ ही जाता है एक दिन पुकार सुनकर सत्य का प्रणेता क्योंकि वह सर्वज्ञ है .
अभिषेक सिन्हा की मतवाले पथिक की तलाश नीम भी सार्थक कर गया यदि स्वाधीनता के रंग में रंगकर कलम कागज़ और स्याही ने प्रेम और सौहार्द का नामाबर लिख दिया ।
देवेन्द्र शर्मा प्रेम पर अधिकार माँग रहे हैं तेरे बारे में प्रेयसी सोचते सो्चते तो दूसरी तरफ़ व्यंग्यात्मक लहजे में भ्रष्टाचार की मूल जड पर प्रहार करते दिखते हैं । समझ गये हैं इंसान के होने का महत्व तभी तो आज मैने ठान ली है के माध्यम से कब यथार्थ अमरत्व उपदेश देते कर्म का महत्व समझ गये हैं पता नहीं चलता क्योंकि दुनिया हम हों ना हों चलती ही रहेगी।
दिनेश गुप्ता एक सिपाही की शहादत के अंतिम क्षणों का चित्रण दीया अंतिम आस का के माध्यम से कर रहे हैं कि सिपाही के दिल में देश के लिये कैसा जज़्बा होना चाहिये कि वो बार बार उसी मिट्टी में जन्म लेकर फिर वतन के लिये मिटने को तैयार रहता है । तो दूसरी तरफ़ मोहब्बत का सागर ठाठें मार रहा है उनकी इन कविताओं में …कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ …सच तो है कैसे लिखा जा सकता है अपरिमित बहते दरिया की बूँद बूँद को तो दूसरी ओर तुमको देखे ज़माना बीत गया और मेरी आँखों में मोहब्बत के जो मंज़र हैं वो खुद हाल-ए-दिल बयाँ कर रहे हैं।
गरिमा पाण्डेय विश्वास से लबरेज़ हौसलों को उडान भरने को कहती हैं साथ प्रेम जो एक विश्वास है, फ़ूल है, राधा है , मीरा है क्योंकि प्रेम से बढकर जग में कुछ नही । साथ ही नारी के प्रति संवेदनायें व्यक्त करती उनकी कलम पिता की स्नेहमयी धारा में डूब कर प्रश्न करती है पिता के ममत्व के प्रति जो विचारणीय है।
मनमोहन कसाना किसान और बरसात के संबंध पर दृष्टिपात करते हुये उनके हर्ष और शोक को व्यक्त कर रहे है कैसे किन परिस्थितियों से वो जूझा करता है तब निवाला उसके मूँह मे डलता है। बोहनी का महत्त्व इतनी संजीदगी से समझा रहे हैं कि पाठक रुक जाता है कुछ देर और सोचता है उस दर्द के बारे में तो दूसरी तरफ़ देश के हालात , अबलाओं पर अत्याचार , रिश्वतखोरी आदि के कारण नाउम्मीद हो रहे हैं ये कहते हुये उम्मीद अब कहाँ ? । सभी रचनायें दर्द को उँडेलती सोचने को विवश करती हैं।आज फिर से के माध्यम से एक सच्चाई की कालिख को समेटती रचना दिल में उतर जाती है।
मुकेश कुमार सिन्हा ने मैया के माध्यम से एक ज़िन्दगी को जी लिया तो दूसरी तरफ़ अखबार की सुर्खियाँ कैसे एक इंसान को व्यथित करती हैं उसका चित्रण किया है । फिर प्रेम गीत गाते हुये कैसे एक मकान के माध्यम से संवेदनाओं के ताबूत पर आखिरी कील जडी है वह पठनीय है जो अन्तस को भिगो जाती है।
नीलिमा शर्मा ने एक ज़माना था के माध्यम से एक स्त्री जो माँ भी है उसके जीवन को दर्शाया है कि समय बदलने से उसके जीवन या दिनचर्या पर कोई फ़र्क नहीं पडता । साथ ही भावुक मन प्रभु से भक्ति का दान लेने के लिये प्रार्थना करता है तो दूसरी तरफ़ बिस्तर की सिलवटें भी एक कहानी कह्ती हैं को अपने संवेदी भावों से संजोया है और रविवार का कहो या प्रियतम का जीवन मे क्या महत्त्व है इसे दर्शाया है इस कविता के माध्यम से अरे, आज रविवार है।
नीरज द्विवेदी ने अपने रचना संसार में एक बेटी के मन के भावों को माँ , इसमें मेरा दोष ना देख के माध्यम से व्यक्त किया है देशभक्ति से ओत-प्रोत रचना मै अगस्त बनना चाहता हूँ , रात भर जलता रहा चाँद गज़ल दिल को छूती है। राष्ट्र की जिजीविषा एक प्रश्न करती है।
प्रदीप तिवारी ने आम आदमी के माध्यम से आज के हालात पर कटाक्ष किया है तो दूसरी तरफ़ बिटिया के माध्यम से बेटी का ज़िन्दगी में क्या औचित्य है उसे उकेरा है साथ में एक मुलाकात के माध्यम से इंसानी सोच को दर्शाया है और साथ में ज़िन्दगी कैसे जीनी चाहिये ये बताया है।
डाक्टर प्रीत अरोडा माँ -एक मधुर अहसास के माध्यम से माँ के महत्त्व को दर्शा रही हैं तो दूसरी तरफ़ बचपन से पोषित संस्कारों की जीत कैसे नियति को सहने को मजबूर करती है , बता रही हैं । मिलजुल कर रहने का संदेश देती नव चेतना और आशा और कर्म की शिक्षा देती सफ़लता का मंत्र कवितायें पढने योग्य हैं।
पुरुषोत्तम वाजपेयी ने जीवन साथी के जाने की पीडा को उकेरा है तू चली गयी के माध्यम से । कौन से मजहब से ,गीत मेरे आज तक और इश्क के गाँव अलग अलग स्वाद से सराबोर रचनायें मन को छूती हैं।
घुमक्कड आगन्तुक ने ज़िन्दगी के उतार चढावों के साथ जीने की जिजीविषा को बयान किया है यूँ तन्हा कब तक घूमोगे बंजारा में । तो दूसरी तरफ़ मोहब्बत के बाज़ार मे खडा मैं दीवाना दीवानगी बेचता हूँ एक शानदार रचना है साथ ही सज़दे आवारा हो गये गज़ल भी मन को मोहती है।ज़िन्दगी का तमाशा हो गया सभी रचनायें पठनीय हैं।
रविन्द्र सिंह की कल रात …मन का कोना एक भीगे दर्द का अहसास कराती रचना दिल मे उतर सी जाती है।मोहब्बत के भीने अहसास से लबरेज़ कविता पहली बारिश सच में अपने साथ भिगो जाती है मन की वादियों को । ज़िन्दगी तन्हा है और कतआत रचनायें भी पठनीय हैं ।
रेखा किरोन तो बचपन के झूले में पींगें भरने लगीं और सोच में डूब गयीं कि बचपन हमेशा यादों की वादियों में वैसा ही तरोताज़ा रहता है। नारी की वेदना को महसूसती हैं आँसुओं की वेदना से तो दूसरी तरफ़ एक अजन्मी बेटी के दर्द को पिरोया है नन्ही सी प्यारी सी में साथ ही रात थी ऐसी एक अन्दर की खोज को उकेरती रचना है।
रोशी अग्रवाल की दशानन का वध एक प्रश्नचिन्ह लगाती रचना है जो आज के हालात पर दृष्टिपात करते हुये हल भी सुझाती है ।इंसानी रिश्ते में रिश्तों के बखिये उधेडती दिखती हैं तो दूसरी तरफ़ स्त्री की पीडा में उस दर्द को बेहद संजीदगी से सहेजा है । कपट के बहुरंग अपने नाम को सार्थक कर रही है कि कैसे इंसान कभी रिश्तों के तो कभी दूसरों के कपट में घिरकर तबाह हो जाता है।
सरस दरबारी बता रही हैं अपने चाहे कितने टुकडे हो जायें फिर भी जीने के लिये अपना सहारा आप ही बनना पडता है । मौन भी बोलता है विस्तार पाता जाता है चाहे कितने ही मोडों से गुजरे । इंसान आम आदमी है कैसे लेखा जोखा रख सकता है अपने आप ही किसी के गुनाहों का इसलिये छोड देता है अपने आप को उसके न्याय पर । माँ के प्रति संवेदना व्यक्त करती रचना माँ की महिमा का गुणगान करती है।
सतीश मापतपुरी की रचनायें ज़िन्दगी थक गयी ऐसे हालात से और ह्रदय की कोमलता मत खो देना दोनों ही आम आदमी की जद्दोजहद भरी ज़िन्दगी से शिकायत करती तो कहीं खुद को समेटती रचनायें हैं । आँख कविता में आँखो के महत्त्व को दर्शाया है तो जाने क्यों तेरी याद आती एक प्रेमी मन की मनोदशा को उकेरती रचना है।
शैल सिंह की मर्मस्पर्शी गीत एक सिपाही की पत्नी रचना एक ऐसी पत्नी की वेदना को व्यक्त कर रही है जिसकी अभी शादी हुयी है और सुहाग की सेज़ छोड पति देश को समर्पित हो गया है तो दूसरी तरफ़ एक प्रेमी का प्रथा पर प्रहार कविता में प्रेमिका का दूसरे की हो जाने पर भी मन के तारों से ना दूर होने का खूबसूरत चित्रण है । मैं सीपी के मोती जैसी और मीत रचनायें मन को लुभाती हैं।
श्यामल सुमन अपनी गज़लों से अपने आप पहचाने वाली शख्सियत हैं जिनकी चारों गज़लें अलग ही समाँ बनाती हैं …बात कहने की धुन में सब कुछ कह देना ,पूछो तो भगवान है क्या में असलियत पर प्रहार कर रहे हैं , खार में भी प्यार है में बता रहे हैं कि ये तो देखने वाले की नज़र पर है वो क्या देखता है और राम तुम्हें बनवास मिलेगा के माध्यम से बता दिया कि आज यदि तुम इस धरती पर आ गये तो कुछ भी वैसा ना मिलेगा और तुम्हारा उपहास ही उडेगा अगर अपनी उन परिपाटियों पर चले तो क्योंकि बहुत बदल चुका है आज आदमी, उसका चरित्र , उसकी सोच्……हालात पर कडा प्रहार करती सशक्त रचना है।
सोनल रस्तोगी ने मिथ्या देव में आज के मानव के चरित्र का सटीक चित्रण किया है तो दूसरी तरफ़ देश के हालात का जिक्र किया है गूंगे बहरे लोग के माध्यम से जिनके ज़मीर तक बिक चुके हैं पता नहीं ज़िन्दा भी हैं या ज़िन्दा लाश ही चल फिर रही है। फिर आये रूठते मनाते दिन और मै आ रही हूँ प्रेम रस से सराबोर रचनायें मन को मोहती हैं
सुमन मिश्रा प्रेम की धूप छांव में ज़िन्दगी के रंगों को गुन रही है और निशा निमन्त्रण पर चाँद को चाहने की इच्छा कर बैठीं मैने चाँद को चाहा था में मगर स्वप्न सरीखी ज़िन्दगी में स्वप्न को आवाज़ मत दो कह रही हैं क्योंकि जरूरी तो नहीं ना स्वप्नों का साकार होना कुछ हकीकतों को कर्म की रेख से ही बुनना पडता हैं।
शुभम त्रिपाठी की ग़ज़ल जीत की दहलीज से चलती है तो जानती है आगाज़ तो हुआ मगर अंजाम खाली था मगर फिर भी दिल के किसी कोने में मेरी इतनी सी हसरत है जो यादों को किसी कब्र में दफ़न कर दिया जाए क्योंकि अब डंसने लगी तन्हाइयां जब से किसी की यादों ने बेइंतेहा घेरा है और सिर्फ एक ही चाह में प्रेमी मन उलझा है इक बार मुझे अपना कह दे उफ़ प्रेम जो न कराये कम ही है .
संध्या जैन एक अलग अन्दाज़ मे अपने भावों को पिरो रही हैं जहाँ शीर्षक की जरूरत ही नहीं लगती …………बस एक कसक है प्रियतम के लिये , एक भाव है , एक मौसम है जो गुनगुना रहा है अपने रेशमी अन्दाज़ में , एक सहर है जो बैठी है उदय होने के ख्याल में , एक मोहब्बत है जो प्यास को भी चुल्लू भर पीना चाहती है और प्यास है कि और बलवती हुयी जाती है ।
कौन से सितारे मे लपेटूँ बिखरे अस्तित्व को ?
फिर लाशों का तर्पण कौन करे ?
क्या ढूँढ सकोगे मुझे ?
एक ऐसा काव्य संग्रह जिसमें जीवन के प्रत्येक पहलू पर शब्दों एक माध्यम से कवियों ने चहलकदमी की है कोई भी पहलू अछूता नहीं रहा चाहे जीवन के उतार चढाव हों , खुशी या गम हो या ईश्वर और इंसान हो सभी को सभी ने अपने अपने विचारों और भावों की माला में इस तरह गूँथा है कि माला का कोई भी पुष्प अलग नहीं लगता । यदि आप इस संग्रह को प्राप्त करना चाहते हैं तो सत्यम या ज्योतिपर्व प्रकाशन से सम्पर्क कर सकते हैं
ज्योतिपर्व प्रकाशन
m: 9811721147
SATYAM SHIVAM
EMAIL : satyamshivam95@gmail.com
m: 9031197811, 9934405997
Comments on: "आओ कुछ शब्दों की चहलकदमी की जाये" (7)
शब्दों की चहलकदमी का बेहतरीन परिचय …. बधाई और शुभकामनायें
महा सागर की तरह संग्रह संजो के रखने वाला होगा … बधाई सभी को …
आप किताब की समीक्षा बहुत अच्छे से करती हैं …..
वाह, एक पुस्तक में इतने लेखक और इतने विषय..सुन्दर समीक्षा..
मुबारकबाद | ये किताब कहाँ से हासिल कर सकते हैं ?कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें | Tamasha-E-ZindagiTamashaezindagi FB Page
चहलकदमी रोचक , शानदार , गीतमय है !
बहुत श्रम से की है आपने इस पुस्तक की समीक्षा..बधाई !