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कुछ नही बचा अब

अब समटने को कुछ नही है
सब कुछ टूट रहा है
बिखर रहा है
दोनों हाथों से
संभाले रखा था जिसे
वो रिश्ता अब
रेत की मानिन्द बिखर रहा है
कतरा कतरा खुशियों का
समेटा था जिस आँचल में
वो आँचल अब गलने लगा है
कब तक आँचल में पनाह पायेगा
इस आँचल से अब तो खून
रिसने लगा है
कब तक कोई ख़ुद की
आहुति दिए जाए
अपने अरमानों की लकडियों से
हवन किए जाए
अब तो लकडियाँ भी
सीलने लगी हैं
किसी के आंसुओं में
भीगने लगी हैं
फिर कैसे इन लकडियों को जलाएं
अरमानों की अर्थी को
कौन से फूलों से सजाएं
अब समेटने को कुछ नही है

Comments on: "कुछ नही बचा अब" (14)

  1. >बहुत ही अच्छी रचना लिखी है आपने ..मेरी कलम – मेरी अभिव्यक्ति

  2. >भावुक एहसास लिए है आपकी यह कविता सुंदर

  3. >kisi se bichardne ka gam saaf jhalak raha hai .. lekin sahi baat hai koi kitna sahega … very nice

  4. >अच्छी रचना लिखी है.

  5. >बहुत मार्मिक रचना है…इतनी उदासी किसलिए?नीरज

  6. >मार्मिक रचना प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.इश्वर से प्रार्थना है कि ये आप बीती न हो.ऐसे लोग जो इस तरह से सहनशील है और अपनी इसी सहनशीलता के गुण के कारण इस दुखद स्थिति में आ गए हैं उनके लिए ही मेरा है निम्न संदेश:जिंदगी जिन्दादिली का नाम है,अपनी सहन शक्ति को नमन करेंउसे दो अगरबत्तियां जला कर पुष्प काढा कर उर्जा प्रदान करें और आप पाएंगी कि दुर्गा जैसी शक्ति स्वतः कहाँ से उत्पन्न हो गई. चन्द्र मोहन गुप्त

  7. >मार्मिक रचना प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.इश्वर से प्रार्थना है कि ये आप बीती न हो.ऐसे लोग जो इस तरह से सहनशील है और अपनी इसी सहनशीलता के गुण के कारण इस दुखद स्थिति में आ गए हैं उनके लिए ही मेरा है निम्न संदेश:जिंदगी जिन्दादिली का नाम है,अपनी सहन शक्ति को नमन करेंउसे दो अगरबत्तियां जला कर पुष्प काढा कर उर्जा प्रदान करें और आप पाएंगी कि दुर्गा जैसी शक्ति स्वतः कहाँ से उत्पन्न हो गई. चन्द्र मोहन गुप्त

  8. >Bhavuk rachanaa …..man ko choo le aisi….

  9. >दिल के दर्द को लफ्ज़ोँ मेँ उतारती रचना

  10. >क्या कहूँ नि:शब्द सा हो गया।

  11. >vandana ji aap mere blog ki follower bani hai,iske liye aapka bahut bahut dhanyawaad.हिन्दी साहित्य …..प्रयोग की दृष्टि से

  12. >achhi kavita hai ..-tarunhttp://tarun-world.blogspot.com

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